Saturday, March 1

बहाना...

यादों के साये, दिल के जख्म
सब पुराना हो गया है…
ज़िन्दगी क़ुरबानी ही है दोस्त
हर अपना बेगाना हो गया है…
चाहतो के मंज़र आंसुओ में
कबके बह चले है …
धड़कनों को हमारे बंद हुए
यार ज़माना हो गया है…
प्यास पिने कि होती गर
बुझा लेते हम आंसुओ से
महोब्बत कि प्यास में तड़पना
मौत का अफसाना हो गया है…
लोग खुशीसे देखते है
ये मुस्कुराता हुआ चेहरा
"मुसाफिर", मुस्कराहट तो बस
जीने का बहाना हो गया हैं…
..........................................मुसाफिर

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