Saturday, March 1

सहारा...

कदम हरकदम फासले बढ़ते चले गए,
पास आये नहीं आप और बिछड़ते चले गए…

बा-अदब हर दर पे सिर को झुका दिया,
सिर बचाके हर दर से निकलते चले गए…

किताबो में पढ़ी आज़ादी समझ आयी जब,
बंध खुलते ही पंछी दूर उड़ते चले गए…

जब कोशिश की हमने शब् में दिये जलाने की,
मेरे साये खुदकी पेशगी पे झगड़ते चले गए…

दो पल हर राहगीर ने मेरा जलता घर देखा,
उस रोज़ सब घरके दिये बुझाते चले गए…

हर रात उनके इंतज़ार में रौशनी की कोशिश,
हर कोशिश में हम हाथ अपना जलाते चले गए…

हम अकेले ही थे जिन्हे बदला नहीं गया,
लोग हमारा सहारा बदलते चले गए…

जब देखा उन्होंने मेरी कब्र पर अपना नाम लिखा,
हँसते हुए आये थे रोते चले गए...
...........................................................मुसाफिर

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