Wednesday, November 30

समझ नहीं आ रहा

समझ नहीं आ रहा, की क्या करू अब मैं.
थोड़ा पानी दे दो की डूब मरू अब मैं...

 न जान न पहचान वो भी आस लगाए बैठे हैं..
अफसर बनु नौकर बनु या शायर बनु अब मैं...

 प्यार था चला गया.. ग़ज़ल हाथ लगा गया..
दिमाग पे चढ़ा दर्द कैसे बयां करू अब मैं..

 सारे पन्ने बेनूर हैं.. बताओ क्या कसूर हैं?
जो भर दिए वो जल दू? या और भरु अब मैं..

 टूटे सपने छूटा साथ, नाउम्मीद ये भी रात
रोशन ऐसे करू की खुद ही जलु अब मैं..

 मंसूब दिल के पक्की तरह दफ़न किए हैं मैंने..
जो मनाया था मातम वो कैसे भूलू अब मैं..

मैं तो हारा, तेरी राह, तू न छोड़ मुसाफिर..
जा जीत ले, ये न पूछ.. कैसे चलू अब मैं...

किसी और के

किसी और के हो रहे हो, बताते तो जाओ.. वफ़ा का इनाम होठों पे लगाते तो जाओ.. जी नहीं शरीख़ होंगे, हम ज़श्न में आपके... पर लिहाज़ के मुताबिक़ हमें बुलाते तो जाओ... निगाहें क्यों अब भी हमपर टिकी है आपकी.. पराये हों, परायापन जताते तो जाओ.. कबूल करने जा रहे हो गैर को तुम हमदम... हमें नाक़बूल कर दो थोड़ा सताते तो जाओ... सवालो से उन्हें यूँ रुलाओ न मुसाफिर.. तुम भी जा रहे हो, उन्हें हंसाते तो जाओ.. ...........................................मुसाफिर

बड़े प्यार से

बड़े प्यार से पूछा हैं, कि कोई गम तो नहीं...
आपकी बेचैनी की वजह, कहीं हम तो नहीं...
नींद कहती हैं आपके ख्वाब, परेशां करते हैं उसे...
बड़ी जल्दी टूटती हैं कि कोई कसम तो नहीं...
वो रोज़ याद आतें हैं, और सवाल पूछ जातें हैं...
काट लोगे ना ज़िन्दगी, यादें कम तो नहीं...
बहोत खूब तस्वीर हैं, आप ही ने बनाई हैं?
कौन हैं ये आपके? कहीं सनम तो नहीं?
शबो-सहर हिज्र, दिल, जलाने लग गया हैं...
ये महोब्बत की पूरानी, कोई रसम तो नहीं...
वक़्त पूरा हो चला हैं, ख्वाब अधूरा ही रुका हैं...
दिल पूछाता हैं मुझसे, अगला जनम तो नहीं...
सब कहते हैं इश्क़ था, "मुसाफिर" अब भी समझ न पाए...
जो हुआ था बरसो पहले, कहीं वो वहम तो नहीं....
..............................................मुसाफिर...

Tuesday, May 10

हमे निकल जाने दो

सिगरेट की तरह सुलगाई थी; किसीने ज़िन्दगी मेरी
अब जब तक जलती रहेगी; सुकून मिलता रहेगा...

मेरे दर्द को मैं; यूँ ही कैसे बाँट दूँ
उनका दिया हुआ  है; दिल मे खिलता रहेगा...

क्या होता हैं इश्क़; कैसे होते है आशिक़
हम याद दिलाते रहेंगे; ज़माना भूलता रहेगा...

अब भी नहीं समझे; बुरी आदत लगी है
जबतक आप न बुझाओ; ये दिल जलता रहेगा...

रोक कर सवाल करने की; कोशिश क्यों हैं आपकी
हमे निकल जाने दो; राज़ तो खुलता रहेगा ...

Friday, February 5

महोब्बत के लिए


हिज्र के दौर से महरूम-ए-महोब्बत; गुज़र ही सकते हैं
जो वाक़िफ़ है मेरे हाल से, दो गज़; बिखर ही सकते हैं...

उनके अक्स पर स्याही; कैसे लगा जाती बेवफ़ाई;
हमारी नज़रों में वो बस; निखर ही सकते हैं...

माना की उनसे अलग; हमें इख़्तियार नहीं था;
इख़्तियार हैं की हम; फिर से उनपर; मर ही सकते हैं...

आज कल में कर लेने दो; हमें ख्वाहिशें पूरी;
मुद्दतों में हम भी कभी; सँवर ही सकते हैं...

जो; दिल समंदर हो गम का; तो बूंदो से क्या बहेगा;
आपके ख़ातिर पलकों में दो अश्क़; भर ही सकतें हैं...

जब दफ़्न करों हमें तब; उन्हें इत्तिला मत करना;
हम शायर हैं; लफ्जों से; उभर ही सकते हैं...

लोग चौंकते हैं; की याद में; ज़िन्दगी कैसे गुज़ार दी;
अपनी महोब्बत के लिए हम; इतना तो; कर ही सकते हैं...

Saturday, January 2

मेरी आखरी घड़ी हैं

मेरी आखरी घड़ी हैं और इक आखरी ख़्वाहिश हैं
उनका आखरी दीदार हों बस ये इक नुमाईश हैं...

पलकें मिटनें से क़तरा रहीं; वो आएं और समझाएं इन्हें
ज़िन्दगी से टूट गयीं; बस उन्हीं से बंदिश हैं ...

वक़्त ने कहाँ था की रूक जाऊंगा दो पल
मैंने कहाँ टी गुज़र जा; ये उनकी गुज़ारिश हैं...

बड़े सजके सज़दे किए औरो के लिए उन्होनें
मुझसे परे हों गएं यहीं अपनी रंजिश हैं...

मेरे क़दीम इश्क़ की मुद्दतें पूरी हों गयीं
यहीं वज़ह हैं की उनके महोल्ले में आतिश हैं...

सावन हिज्रत कर गया तो बरखा की उम्मीद थीं
लौटकर ख़िज़ाँ आयी ये फिजाँ की साज़िश हैं...