Wednesday, November 30

समझ नहीं आ रहा

समझ नहीं आ रहा, की क्या करू अब मैं.
थोड़ा पानी दे दो की डूब मरू अब मैं...

 न जान न पहचान वो भी आस लगाए बैठे हैं..
अफसर बनु नौकर बनु या शायर बनु अब मैं...

 प्यार था चला गया.. ग़ज़ल हाथ लगा गया..
दिमाग पे चढ़ा दर्द कैसे बयां करू अब मैं..

 सारे पन्ने बेनूर हैं.. बताओ क्या कसूर हैं?
जो भर दिए वो जल दू? या और भरु अब मैं..

 टूटे सपने छूटा साथ, नाउम्मीद ये भी रात
रोशन ऐसे करू की खुद ही जलु अब मैं..

 मंसूब दिल के पक्की तरह दफ़न किए हैं मैंने..
जो मनाया था मातम वो कैसे भूलू अब मैं..

मैं तो हारा, तेरी राह, तू न छोड़ मुसाफिर..
जा जीत ले, ये न पूछ.. कैसे चलू अब मैं...

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