Wednesday, November 30

किसी और के

किसी और के हो रहे हो, बताते तो जाओ.. वफ़ा का इनाम होठों पे लगाते तो जाओ.. जी नहीं शरीख़ होंगे, हम ज़श्न में आपके... पर लिहाज़ के मुताबिक़ हमें बुलाते तो जाओ... निगाहें क्यों अब भी हमपर टिकी है आपकी.. पराये हों, परायापन जताते तो जाओ.. कबूल करने जा रहे हो गैर को तुम हमदम... हमें नाक़बूल कर दो थोड़ा सताते तो जाओ... सवालो से उन्हें यूँ रुलाओ न मुसाफिर.. तुम भी जा रहे हो, उन्हें हंसाते तो जाओ.. ...........................................मुसाफिर

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