Wednesday, November 30

बड़े प्यार से

बड़े प्यार से पूछा हैं, कि कोई गम तो नहीं...
आपकी बेचैनी की वजह, कहीं हम तो नहीं...
नींद कहती हैं आपके ख्वाब, परेशां करते हैं उसे...
बड़ी जल्दी टूटती हैं कि कोई कसम तो नहीं...
वो रोज़ याद आतें हैं, और सवाल पूछ जातें हैं...
काट लोगे ना ज़िन्दगी, यादें कम तो नहीं...
बहोत खूब तस्वीर हैं, आप ही ने बनाई हैं?
कौन हैं ये आपके? कहीं सनम तो नहीं?
शबो-सहर हिज्र, दिल, जलाने लग गया हैं...
ये महोब्बत की पूरानी, कोई रसम तो नहीं...
वक़्त पूरा हो चला हैं, ख्वाब अधूरा ही रुका हैं...
दिल पूछाता हैं मुझसे, अगला जनम तो नहीं...
सब कहते हैं इश्क़ था, "मुसाफिर" अब भी समझ न पाए...
जो हुआ था बरसो पहले, कहीं वो वहम तो नहीं....
..............................................मुसाफिर...

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