Wednesday, September 3

कीड्यांनो...

काळोखात किर्कीरणाऱ्या कीड्यांनो,
तुम्ही कधीपासून स्वतःला,
अंधारातल्या शिकारी घुबडाचा
बाप समजून घेतलात?
गरुडाची सावली ढगांवर पडते,
जमिनीवर नाही
हे विसरलात तुम्ही कीड्यांनो..
वणवा रात्रीचा सुंदर दिसतो म्हणून
जवळ येण्याचा प्रयत्न करू नका..
आम्ही जळत आहोत, तुम्ही भस्म व्हाल..
भडव्यांच्या भाषेला प्रत्युत्तर म्हणून
आम्ही भडवे बनणार नाही..
तुमच्या जाती तुम्हांस लाख मुबारक...
कीड्यांनो...

Tuesday, September 2

ज़िन्दगी

सवाल हैं वजूद का या जवाब है ये ज़िन्दगी
या मौत से छिपने का नक़ाब है ये ज़िन्दगी

उल्फत में हों अगर तो आखें क्यों भीगी है
देखता हु तो लगता है ख़फ़ा है ये ज़िन्दगी

लम्बी उम्र की क्यों मांगते है दुआ लोग
सुनता हूँ तो लगता है रफ़ा हैं ये ज़िंदगी

रहत उसकी साँसों में किस चीज की है आखिर
महसूस करू तो लगता है दगाह है ये ज़िन्दगी

आखरी पन्ना किताब का फाड़ दिया है किसीने
पढता हूँ तो लगता हैं गुनाह है ये ज़िन्दगी

मुझे देखके कहते है जी रहा है "मुसाफिर"
जीता हूँ तो लगता है सज़ा हैं ये ज़िन्दगी...