Wednesday, August 27

भीड़

इश्क़ की अपनी तक़दीर हुआ करती है..
दिल पे किसी की तहरीर हुआ करती है..

निगाहे नम और होंठो पे हँसी की लकीर..
उनकी महोब्बत जाहीर हुआ करती है..

कभी पलट के देखना पुरानी किताब के पन्नें..
छिपी हुई कोई तस्वीर हुआ करती है..

यु ही कोई बर्बाद नहीं हुआ करते..
हर रांझे की कोई हीर हुआ करती है..

आशिक़ के घर जाओ तो गुम न होना मुसाफिर...
मैकदो में अक्सर भीड़ हुआ करती है...

Wednesday, August 20

तमाशा

आज अहमियत अपनी दिखा रहे है लोग
बिन बुलाये मुझसे मिलने आ रहे है लोग...

जब ज़रूरत थी किसी ने हाथ तक न दिया
आज मुझे कंधो पे उठा रहे हैं लोग...

मुझे परायी नज़र से देखा करते थे सब
दिल खोलके अपनापन जता रहे हैं लोग...

हर देखनेवाले की आँखे अब नम है...
मैं सो रहा हु मुझपे रो रहे है लोग...

रोज़ मेरी खामियाँ गिना करते थे जो
मेरी ख़ूबियाँ आज सबको बता रहे हैं लोग...

ज़िन्दगी के तमाशे में थोड़ी कसर थी "मुसाफिर"
जो मेरी मौत का भी तमाशा बना रहे है लोग...

Sunday, August 10

मला जगायचं होतं

काही क्षण निवांत बसायचं होतं...
आठवून दु:ख पुन्हा हसायचं होतं...

आसवांची किंमत समजली होती...
अक्षांमधेच कुठं लपवायचं होतं...

दिवसाची किलबिल नेहमीचीच होती...
रात्रीच्या किर्कीरीत जागायचं होतं...

मी जगावेगळा नाही हे समजलं जेव्हा...
माझं वेगळं जग मला बनवायचं होतं...

जेवढा लढलो तेवढ्या जखमा...
श्वास होता आणखी लढायचं होतं...

मज मारण्याची मरणाची औकात नव्हती...
मी जगलो जिथवर मला जगायचं होतं...
...........................................मी...

Wednesday, August 6

ठोकरें

क्यों उस गैर को याद कर रहे हों
फिर पाने की फ़रियाद कर रहे हों...

इश्क़ के दायरे गम में सिमटते हैं
उल्फ़त ढूंढने में उम्र बर्बाद कर रहे हों...

यहाँ हर सहर दुनिया जल रही हैं
और सर्रारों में बैठे बरसात कर रहे हों...

ये दलीलें नहीं की गुनेहगार तुम थें
जो गुनाह-ए-सबब इश्क़ दिनरात कर रहे हो...

इस राह की ठोकरें तुम खा चुके "मुसाफिर"
फिर भी महोब्बत की बात कर रहे हों...
.................................................मुसाफिर...