Wednesday, August 20

तमाशा

आज अहमियत अपनी दिखा रहे है लोग
बिन बुलाये मुझसे मिलने आ रहे है लोग...

जब ज़रूरत थी किसी ने हाथ तक न दिया
आज मुझे कंधो पे उठा रहे हैं लोग...

मुझे परायी नज़र से देखा करते थे सब
दिल खोलके अपनापन जता रहे हैं लोग...

हर देखनेवाले की आँखे अब नम है...
मैं सो रहा हु मुझपे रो रहे है लोग...

रोज़ मेरी खामियाँ गिना करते थे जो
मेरी ख़ूबियाँ आज सबको बता रहे हैं लोग...

ज़िन्दगी के तमाशे में थोड़ी कसर थी "मुसाफिर"
जो मेरी मौत का भी तमाशा बना रहे है लोग...

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