Saturday, March 1

दुल्हन...

आज बड़ी उल्फत महसुस हो रही है,
मंजील मेरी सामने नजर आ रही है...

हर पल धड़कता रहा थक गया था ये दिल,
शाम हो रही है धड़कन थमती जा रही है...

खूब इंतज़ार किया था मेरी दुल्हन का मैंने,
खूब सजाओ मुझे वो मिलने बुला रही है...

थमती साँसे रुकता दिल समां भी ऐसा है,
जैसे महबूब से पहली मुलाकात हो रही है...

लगा था की क्या खुशनुमा आलम होगा,
उलझन है की दुनिया आंसू बहा रही है...

उम्रभर ये गम की कुछ नहीं है मेरा,
कफ़न ओढ़ते ही जमीं मेरी हो रही है...

पहले बता देते लोग कंधो पे उठाते है ,
अकेले चलने की मेरी आदत सी रही है...

आज़ाद हो रहा हूँ ज़िन्दगी की पकड़ से,
वो रोये जा रही है मौत जश्न मना रही है...

बस अब थोडासा सफ़र बचा है "मुसाफिर"
की देख तेरी कब्र नजदीक आ रही है !!
                                                - मुसाफिर

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