Saturday, March 1

संघर्ष...

ये ज़िन्दगी कोई संघर्ष है तो क्या,
थोड़ा ज़ख्मों का है डर, है तो क्या,
बुनियाद लोगों नें खोखली कर रखी है,
अब तूफाँ को पता मेरा घर है तो क्या! 

मेरे आने से कोई बेखबर है तो क्या,
मुझे महोब्बत है किसीसे मगर, है तो क्या,  
धुंधलाते धुए में समाना है अब तो,
फिर ये काफिला है या समंदर, है तो क्या! 

ये झुका हुआ मेरा सर है तो क्या,
मुझे पहचानती हर नजर है तो क्या,
अब अपनों के धोखो की आदत सी है, 
यहाँ अपनों का है बसर, है तो क्या!

ये रात का आखरी पहर है तो क्या,
है ये नशे का असर, है तो क्या,
यु भी तो रुख्सत होना ही है कभी, 
गर जाम में है ज़हर, है तो क्या!

सावन में सुख चूका शज़र है तो क्या, 
ये परिंदे पे कोई कहर है तो क्या,
नसीब का पन्ना मेरी ज़िन्दगी में नहीं,
या खुदा के लिखने में कसर है तो क्या!

साहिल से आगे निकली लहर है तो क्या,
शहर के डूबने का मंजर है तो क्या,
चल कोई नया बसेरा ढूंढ़ ले 'मुसाफिर',
ये कोई अनजान शहर है तो क्या!
...............मुसाफिर...................

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