Thursday, February 13

ये जो आदत हैं

ये जो आदत हैं तेरे दीदार की
जान के साथ ही तोह छूटेगी

रात के राज़ में ये सुबह हुई 
और एक सुबह, और एक रात कटेगी

तेरे कंवल के आदि हुए है हम
नैनो में आज इक यहीं कसक उठेगी

तेरी ही जान है, तेरा ही जहान है
तू अपनी जान से कबतक रूठेगी

ये चाय की प्याली ठंडी हो जाएगी
छू लो इसे ये बिखरेगी जोह टूटेगी

जब नहीं दिखेंगे उस जगह हम
अकेले चलने की हिम्मत कैसे जुटेगी

अकेला है आईना, बहोत तकलीफ़ होगी
शीशे में कैद हमारी तस्वीर जब फूटेगी

थाम लेना गर दिल कहें तुम्हारा
मेरी जान, मेरी जान, जब तुम पर लूटेगी



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