Friday, February 28

फिरता हूँ...

मैं खुदमें तेरा नाम लिए फिरता हूँ;
इश्क़ में तेरे बदनाम हुए फिरता हूँ...

शायद मंज़िल अपनी पीछे छूट गयी कहीं;
यारों हज़ारों में गुमनाम हुए फिरता हूँ...

साकी तेरी तरह ही हो लिया आज मैं भी;
अब प्यार के नशे का जाम पिए फिरता हूँ...

कोई हाक़िम ना मिला मेरे मर्ज़ की दवा देनेवाला;
मैं भी ज़िंद-ए-शाम का इंतज़ार किये फिरता हूँ...

हुक़ूमत उन्हीं की है जो दिलों पे राज करते हैं;
मैं तो ज़ंज़ीरों में अपनी आज़ादी लिए फिरता हूँ...

जंग-ए-ज़िन्दगी तो अभी जारी हैं "मुसाफिर";
और मैं हूँ की बस प्यार किये फिरता हूँ...
..........................................................मुसाफिर

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