लफ़्ज़ों से परे हो वोह बात, कैसे कहूं,
मैं तुमसे ये मेरे हालात, कैसे कहूं...
कोई गुलाब छीन गया है शाख सें यहां,
टूटे फूल की क्या है औकात, कैसे कहूं...
दर्द हैं लबों में मेरे, मेरे लफ़्ज़ों से दर्द है,
तोह सब झूठे हैं इल्ज़ामात, कैसे कहूं...
हर पल इक बरस, हर बरस नासूर हुआ,
हर पल में गुजर रही, इक हयात, कैसे कहूं...
और इक रात, और इक उम्र मेरी,
कैसे कटी थी कल की रात, कैसे कहूं...
वक़्त बेरहम हैं, वक़्त बेगुनाह कैसे,
ये दूरियों का है आलात, कैसे कहूं...
तुमसे जो बनती थी, मेरे हम-नफज,
ये बिखरी हैं मेरी कायनात, कैसे कहूं...
मेरे महबूब मेरी सज़ा यहीं है कि बस,
अब कुछ नहीं हैं मेरी बिसात, कैसे कहूं...
आ जाना कब्र पर मेरी और आवाज़ देना,
और बताना ये दफ्न जज़्बात, कैसे कहूं...
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