क्या आज दिदार होगा, उनसे सवाल हुआ।
पर्दा खींचा गया और दिल बेहाल हुआ।
एक ओर उनका महल, दुसरी ओर मयखाना।
और बीच गली में मैं, बहोत बवाल हुआ।
हुस्न वालों की मर्जी, उनकी रोज ईद।
मैं तो बकरा था हीं, हर रोज हलाल हुआ।
जलील होंगे इल्म था, फिर भी डटा रहा।
और ये कमाल हुआ, वहॉं मेरा खयाल हुआ।
कल फिर तमाशा होगा, कल फिर जलील होंगे।
कल पता कर आएंगे, उन्हें कितना मलाल हुआ।
............... मुसाफिर...
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