जब भी आईने में मैंने देखा कभी ,
तेरी ही परछाई मेरी निगाह में थी !
कुछ तेरी गलियो का भी कसूर था ,
जो मेरी ख़ुशी गम के पनाह में थी
हर अश्क जो मेरी पलकों में रुका ,
वो तेरे ही इंतेज़ार में था
वो तेरा ही दिया जख्म था ,
जिसकी तड़प मेरी आह में थी !!
हर ठोकर जो खायी मैंने ,
वो तेरे ही घर कि राह में थी !
जब पंहुचा तेरे दर पे मैं,
तू किसी और के बाह में थी !!
हर पत्थर मुझपे बरसा जो ,
वो तेरे ही चाहनेवालो का था
मुझे आवारा कहती भीड़ भी
तेरी ही झलक कि चाह में थी !!
तन्हाई कि सलाखो के पीछे खड़ी ज़िन्दगी ,
तेरे ही इश्क़ के गुनाह में थी !!
वो सुन न पायी ये बहरी दुनिया
जो चीख दबी मेरे कराह में थी !!
आंसू मेहमानो के तेरे निकाह में
तेरी बिदाई के नहीं थे पागल !!
वो अभी लौटे मेरी कब्र से थे ,
जो तब सजी कबरगाह में थी !!
No comments:
Post a Comment