लोग आते हैं और जाते हैं; क्या फर्क पड़ता हैं
देखकर मुँह मोड़ जाते हैं; क्या फर्क पड़ता हैं...
जो जश्न में शरीख़ हुए; उनका अब पता नहीं
झूठे साथ छोड़ जाते हैं; क्या फर्क पड़ता हैं...
ख़ुशी-गम; ज़िन्दगी- मौत; सारें वादे टूट जातें हैं
शब साया चुरा लेती हैं; क्या फर्क पड़ता हैं...
लफ्ज कोरे हो या कागज़; दिल गम बयाँ करता हैं
शायरी ग़ज़ल बन जाती हैं; क्या फर्क पड़ता हैं...
तुम सच जानना चाहते थे, लो मैने कह दिया
मैं होश में हूँ या मदहोश; क्या फर्क पड़ता हैं...
शोहरत दिल की होगी तो; सुकून की नींद होगी मुसाफिर!
नींद घर में हो या कब्र में; क्या फर्क पड़ता हैं...
देखकर मुँह मोड़ जाते हैं; क्या फर्क पड़ता हैं...
जो जश्न में शरीख़ हुए; उनका अब पता नहीं
झूठे साथ छोड़ जाते हैं; क्या फर्क पड़ता हैं...
ख़ुशी-गम; ज़िन्दगी- मौत; सारें वादे टूट जातें हैं
शब साया चुरा लेती हैं; क्या फर्क पड़ता हैं...
लफ्ज कोरे हो या कागज़; दिल गम बयाँ करता हैं
शायरी ग़ज़ल बन जाती हैं; क्या फर्क पड़ता हैं...
तुम सच जानना चाहते थे, लो मैने कह दिया
मैं होश में हूँ या मदहोश; क्या फर्क पड़ता हैं...
शोहरत दिल की होगी तो; सुकून की नींद होगी मुसाफिर!
नींद घर में हो या कब्र में; क्या फर्क पड़ता हैं...
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