They gave me II rank for this.. competition thi yaar... :P
topic: Love in Library
जहाँ भी मैं देखूं, बस लफ्ज़ ही लफ्ज़ दिखें
इस कदर डूबा हुआ था मैं किताबों में...
जर्रे जर्रे में अज़ीब सन्नाटा सा छाया था
बस मैं और मेरी किताब थे अपनी तन्हाइयों में...
एक धीमी सी ख़ुशबू मेरी साँसों में भर गयी
किसने जादूगरी की थी उन सुर्ख हवाओं में ...
नज़र जो उठाई एक नज़र नजर आयी
बड़ी दिलकश सी लगी थी वो नजर नज़ारों में ...
क़िताबों से परे अब मैं कँवल पढ़ रहा था
ये कैसी लगन आ गयी थी मेरे इरादो में ...
इत्मीनान से निग़ाहों में निग़ाहें जब मिली
क्या गुफ़तगू थी लाजमी जो चली इशारों में ...
शरमा कर उसने जिसमे चेहरा छिपा लिया था
वो 'साहिर' की शायरी थी उन फ़िज़ाओं में ...
मदहोश हो चुके थे मेरी क़िताब के अलफ़ाज़ भी
कि इतराती सी ग़ज़ल हो उनकी पनाहों में ...
सरसराती सी हवां मेरे पन्नें पलट कर चली गयी
छिप गयी जाकर उसकी ज़ुल्फ़ों की घटाओं में ...
हँस रहीं थी क़िताबें, समझ गई थीं वों
कि मैं खो रहा था इश्क़ की राहों में...
पहल मैंने कर ली गुज़रा सामने से
मुस्कुराये लब वो, देख मेरी आँखों में ...
नज़ाकत से सँवारती जुल्फें इस कदर वो
कि क्या बहार होगी सावन की बहारों में ...
समंदर से कोरे लगे कागज़ क़िताबों के
कि लिख़ दूं महोब्बत मेरी उनके किनारों में ...
वो महोब्बत के पन्नें पढ़ रही थी शायद
जो पढ़ रहा था मैं भी उसकी निग़ाहों में ...
धड़कनें बढ़ गई थी जब उठने लगी थी वो
समेटकर किताबों को अपनी बाहों में...
धीमे कदम उसके जो मेरी तरफ बढ़े थें
नजरे झुका ली मैंने, गढ़ा दी इश्तेहारों में ...
पास आकर उसने एक किताब थमाई मुझे
इरादा-ऐ-इज़ाफ़ा था उसका अपने रिश्तेदारो में ...
कलम से लिखा हुआ था इज़हार-ऐ-इश्क़
कि किस्मत चल पड़ी थी उल्फ़तों में ...
कल फिर रूबरू होंगे इन्ही क़िताबों के बिच
अब यही दुआ बची है दिल की हसरतों में...
topic: Love in Library
जहाँ भी मैं देखूं, बस लफ्ज़ ही लफ्ज़ दिखें
इस कदर डूबा हुआ था मैं किताबों में...
जर्रे जर्रे में अज़ीब सन्नाटा सा छाया था
बस मैं और मेरी किताब थे अपनी तन्हाइयों में...
एक धीमी सी ख़ुशबू मेरी साँसों में भर गयी
किसने जादूगरी की थी उन सुर्ख हवाओं में ...
नज़र जो उठाई एक नज़र नजर आयी
बड़ी दिलकश सी लगी थी वो नजर नज़ारों में ...
क़िताबों से परे अब मैं कँवल पढ़ रहा था
ये कैसी लगन आ गयी थी मेरे इरादो में ...
इत्मीनान से निग़ाहों में निग़ाहें जब मिली
क्या गुफ़तगू थी लाजमी जो चली इशारों में ...
शरमा कर उसने जिसमे चेहरा छिपा लिया था
वो 'साहिर' की शायरी थी उन फ़िज़ाओं में ...
मदहोश हो चुके थे मेरी क़िताब के अलफ़ाज़ भी
कि इतराती सी ग़ज़ल हो उनकी पनाहों में ...
सरसराती सी हवां मेरे पन्नें पलट कर चली गयी
छिप गयी जाकर उसकी ज़ुल्फ़ों की घटाओं में ...
हँस रहीं थी क़िताबें, समझ गई थीं वों
कि मैं खो रहा था इश्क़ की राहों में...
पहल मैंने कर ली गुज़रा सामने से
मुस्कुराये लब वो, देख मेरी आँखों में ...
नज़ाकत से सँवारती जुल्फें इस कदर वो
कि क्या बहार होगी सावन की बहारों में ...
समंदर से कोरे लगे कागज़ क़िताबों के
कि लिख़ दूं महोब्बत मेरी उनके किनारों में ...
वो महोब्बत के पन्नें पढ़ रही थी शायद
जो पढ़ रहा था मैं भी उसकी निग़ाहों में ...
धड़कनें बढ़ गई थी जब उठने लगी थी वो
समेटकर किताबों को अपनी बाहों में...
धीमे कदम उसके जो मेरी तरफ बढ़े थें
नजरे झुका ली मैंने, गढ़ा दी इश्तेहारों में ...
पास आकर उसने एक किताब थमाई मुझे
इरादा-ऐ-इज़ाफ़ा था उसका अपने रिश्तेदारो में ...
कलम से लिखा हुआ था इज़हार-ऐ-इश्क़
कि किस्मत चल पड़ी थी उल्फ़तों में ...
कल फिर रूबरू होंगे इन्ही क़िताबों के बिच
अब यही दुआ बची है दिल की हसरतों में...
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